सूरह अल-कौसर के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है, इस में 3 आयतें हैं।
यह सूरह मक्की है, इस में 3 आयतें हैं।
- इस की प्रथम आयत में “कौसर” शब्द आया है जिस का अर्थ है। बहुत सी भलाईयाँ और जन्नत के अन्दर एक नहर का नाम भी है। इस लिये इस का नाम “सूरह कौसर” है।[1]
1. यह सूरह मक्का में उस समय उतरी जब मक्का वासियों ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को इसलिये अपनी जाति से अलग कर दिया कि आप ने उन की मूर्तिपूजा की परम्परा का खण्डन किया। और नबी होने से पहले आप की जो जाति में मान मर्यादा थी वह नहीं रह गई। आप अपने थोड़े से साथियों के साथ निस्सहाय हो कर रह गये थे। इसी बीच आप (ﷺ) के एक पुत्र का निधन हो गया था जिस पर मूर्ति पूजकों ने खुशियां मनाई और कहा कि मुहम्मद (ﷺ) के कोई पुत्र नहीं| वह निर्मल हो गया और उस के निधन के बाद उस का कोई नाम लेवा नहीं रह जायेगा। ऐसे हृदय विदारक क्षणों में आप (ﷺ) को यह शुभ सूचना दी गई कि आप निराश न हों आप के शत्रु ही निर्मूल होंगे। यह शुभ सूचना और भविष्य वाणी कुरआन ने उस समय दी जब कोई यह सोच भी नहीं सकता था कि ऐसा हो जाना संभव है। परन्तु कुछ ही वर्षों बाद ऐसा परिवर्तन हुआ कि मक्का के अनेकेश्वर वादियों का कोई सहायक नहीं रह गया। और उन्हें विवश हो कर हथियार डाल देने पडे। और फिर आप के शत्रुओं का कोई नाम लेवा नहीं रह गया। इस के विपरीत आज भी करोड़ों मुसलमान आप (ﷺ) से संबंध पर गर्व करते हैं, और आप (ﷺ) पर दरूद भेजते हैं।
- इस की आयत 1 में नबी (सल्लल्लाह अलैहि व सल्लम) को बहुत सी भलाईयाँ प्रदान किये जाने की शुभ सूचना दी गई है।
- और आयत 2 में आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को इस प्रदान पर नमाज़ पढ़ते रहने तथा कुर्बानी करने का आदेश दिया गया है।
- आयत 3 में आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को दिलासा दी गई है कि जो आप के शत्रु हैं वह आप का कुछ बिगाड़ नहीं सकेंगे बल्कि वह स्वयं बहुत बड़ी भलाई से वंचित रह जायेंगे।
- हदीस में है कि आइशा (रज़ियल्लाह अन्हा) ने कहा कि कौसर एक नहर है, जो तुम्हारे नबी को प्रदान की गई है। जिस के दोनों किनारे मोती के और बर्तन आकाश के तारों की संख्या के समान हैं। (सहीह बुखारीः 4965)
- और इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हमा) ने कहा कि कौसर वह भलाईयाँ हैं जो अल्लाह ने आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को प्रदान की हैं। (सहीह बुख़ारीः 4966)
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