सरह आले इमरान के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मदनी है, इस में 200 आयतें है।- इस सूरह की आयत 33 में आले इमरान (इमरान की संतान) का वर्णन हुआ है जो ईसा (अलैहिस्सलाम) की माँ मर्यम (अलैहिस्सलाम) के पिता का नाम है| इस लिये इस का नाम ((आले इमरान)) रखा गया है।
- इस की आरंभिक आयत 9 तक तौहीद (अद्वैतवाद) को प्रस्तुत करते हुये यह बताया गया है कि कुरआन अल्लाह की वाणी है इस लिये सभी धार्मिक विवाद में यही निर्णयकारी है।
- आयत 10 से 32 तक अहले किताब तथा दूसरों को चेतावनी दी गई है कि यदि उन्हों ने कुरआन के मार्गदर्शन को जिस का नाम इस्लाम है नहीं माना तो यह अल्लाह से कुफ्र होगा जिस का दण्ड सदैव के लिये नरक होगा। और उन्हों ने धर्म का जो वस्त्र धारण कर रखा है प्रलय के दिन उस की वास्तविक्ता खुल जायेगी और वह अपमानित हो कर रह जायेंगे।
- आयत 33 से 63 तक में मर्यम (अलैहस्सलाम) तथा ईसा (अलैहिस्सलाम) से संबन्धित तथ्यों को उजागर किया गया जो उन निर्मुल विचारों का खण्डन करते है जिन्हें ईसाईयों ने धर्म में मिला लिया है और इस संदर्भ में जकरिय्या (अलैहिस्सलाम) तथा यह्या (अलैहिस्सलाम) का भी वर्णन हुआ है।
- आयत 64 से 101 तक अहले किताब ईसाईयों के कुपथ और उन के नैतिक तथा धार्मिक पतन का वर्णन करते हुये मुसलमानों को उन से बचने के निर्देश दिये गये हैं।
- आयत 102 से 120 तक मुसलमानों को इस्लाम पर स्थित रहने तथा कुरआन पाक को दृढ़ता से थामे रहने और अपने भीतर एक ऐसा गिरोह बनाने के निर्देश दिये गये हैं जो धार्मिक सुधार तथा सत्य का प्रचार करे और इसी के साथ अहले किताब के उपद्रव से सावधान रहने पर बल दिया गया है।
- आयत 121 से 189 तक उहुद के युद्ध की स्थितियों की समीक्षा की गई है। तथा उन कमजोरियों की ओर संकेत किया गया है जो उस समय उजागर हुई।
- आयत 190 से अन्त तक इस का वर्णन है कि ईमान कोई अन्ध विश्वास नहीं, यह समझ बूझ तथा स्वभाव की आवाज़ है। और जब मनुष्य इसे दिल से स्वीकार कर लेता है तो उस का संबन्ध अल्लाह से हो जाता और उस की यह प्रार्थना होती है कि उस का अन्त शुभ हो। उस समय उस का पालनहार उसे शुभपरिणाम की शुभसूचना सुनाता है कि उस ने सत्धर्म का पालन करने में जो योगदान दिये हैं वह उसे उन का भरपूर सुफल प्रदान करेगा। फिर अन्त में सत्य की राह में संघर्ष करने और सत्य तथा असत्य के संघर्ष में स्थित रहने के निर्देश दिये गये हैं।
0 comments: