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111. सूरह अल-लहब


सूरह अल-लहब  के संक्षिप्त विषय

यह सूरह मक्की है, इस में 5 आयतें हैं।

  • इस की आयत 1 में (तब्बत) शब्द आने के कारण इस का नाम (सूरह तब्बत) है। जिस का अर्थ तबाह होना है।[1]

1. यह सूरह आरंभिक मक्की सूरतों में से है। इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से रिवायत है कि जब नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को यह आदेश दिया गया कि आप समीप वर्ती संबंधियों को अल्लाह से डरायें, तो आप सफा “पहाड़ी” पर गये, और पुकाराः “हाय भोर की आपदा!” यह सुन कर कुरैश के सभी परिवार जन एकत्र हो गये| तब आप ने कहाः यदि मैं तुम से कहूँ कि इस पर्वत के पीछे एक सेना है जो तुम पर आक्रमण करने को तैयार है तो तुम मेरी बात मानोगे? सब ने कहाः हाँ। हम ने कभी आप से झूठ नहीं आजमाया। आप ने फरमायाः मैं तुम्हें आग (नर्क) की बडी यातना से सावधान करता है। इस पर किसी के कुछ बोलने से पहले आप के चचा “अबु लहब” ने कहाः तुम्हारा सत्यानास हो! क्या हमें इसी लिये एकत्र किया है? और एक रिवायत यह भी है कि उस ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को मारने के लिये पत्थर उठाया, इसी पर यह सरह उतारी गई। (देखियेः सहीह बुख़ारीः 4971, और सहीह मुस्लिमः 208)

  • आयत 1 से 3 तक में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के शत्रु अबू लहब के बुरे परिणाम से सूचित किया गया है।
  • आयत 4 और 5 में उस की पत्नी के शिक्षाप्रद परिणाम का दृश्य दिखाया गया है जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से बैर रखने में अपने पति के साथ थी।
  • हदीस में है कि जब नबी (सल्लल्लाह अलैहि व सल्लम) को आदेश दिया गया कि आप अपने समीप के परिजनों को डरायें तो आप ने सफा (पर्वत) पर चढ़ कर पुकारा| और जब सब आ गये, तो कहाः यदि मैं तुम से कहें कि इस पर्वत के पीछे एक सेना है जो तुम पर सवेरे या संध्या को धावा बोल देगी तो तुम मानोगे? सब ने कहाः हाँ। हम ने कभी आप को झूठ बोलते नहीं देखा। आप ने कहाः मैं तुम्हें अपने सामने की दुःखदायी यातना से डरा रहा हूँ। इस पर अबू जहल ने कहाः तुम्हारा नाश हो। क्या इसी लिये हम को एकत्र किया है। इसी पर यह सूरह अवतरित हुई। (सहीह बुख़ारीः 4971)

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